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बैतूल लोकसभा : कांग्रेस के रामू ज्यादा लोकप्रिय,पर मोदी लहर के कारण भाजपा के दुर्गादास से पिछड़े

बैतूल लोकसभा : कांग्रेस के रामू ज्यादा लोकप्रिय,पर मोदी लहर के कारण भाजपा के दुर्गादास से पिछड़े

दिनेश निगम ‘त्यागी’ : भाजपा का गढ़ बन चुके बैतूल लोकसभा क्षेत्र के लिए प्रचार गति पकड़ रहा है। पहले यहां दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना था लेकिन बसपा प्रत्याशी की अचानक मृत्यु के कारण प्रक्रिया आगे बढ़ गई और अब यहां तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होगा। भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों को मतदाताओं की पंसद के तराजू पर तौलने से पता चलता है कि भाजपा के दुर्गादास उइके 2019 में जीतने के बाद निष्क्रिय रहे। क्षेत्र के लिए कोई खास काम नहीं किया जबकि कांग्रेस के रामू टेकाम पिछला चुनाव हार जाने के बावजूद क्षेत्र में  लगातार सक्रिय रहे। 

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इन स्थितियों के बाद भी कांग्रेस के टेकाम भाजपा के उइके से पिछड़ते दिख रहे हैं। वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अयोध्या में राम मंदिर के कारण भाजपा के पक्ष में चल रही लहर। 1996 से लगातार भाजपा जीत रही है, इसलिए यहां का मतदाता भाजपा की मानसिकता वाला पहले से है। कांग्रेस बैतूल संसदीय क्षेत्र में आखिरी बार 1991 में जीती थी। तब कांग्रेस के असलम शेर खान ने भाजपा के आरिफ बेग को लगभग 23 हजार वोटों के अंतर से हराया था। कांग्रेस तब से ही एक अदद जीत के लिए तरस रही है।

टेकाम और उइके में कई समानताएं

एक दूसरे का मुकाबला कर रहे कांंग्रेस के रामू टेकाम और भाजपा के दुर्गादास उइके में कई समानताएं हैं। लोगाें की नजर मेंे दोनों सहज और सरल स्वभाव के हैं। दोनों वाकपटु भी हैं। दुर्गादास अपने भाषणों में संस्कृत का अच्छा प्रयोग करते हैं। उन्हें इस भाषा का अच्छा ज्ञान है। दूसरी तरह राम भी अच्छे वक्ता है। उनके भाषण लोगों को आकर्षित करते हैं। एक समानता यह भी है कि दोनाें बैतूल लोकसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा के दुर्गादास साढ़े 3 लाख से ज्यादा वोटों के बड़े अंतर से जीत गए थे, जबकि रामू को हार का सामना करना पड़ा था।

इस मामले में दोनों एक दूसरे से अलग

समानताओं के साथ दोनों की कार्यशैली में अंतर भी है। दुर्गादास 2019 में पहली बार चुनाव जीते लेकिन जनता के बीच निष्क्रिय हो गए। लोगों का कहना है कि उइके संगठन से जुड़े रहते हैं। नेताओं  को भी साध कर चलते हैं लेकिन पूरे पांच साल उन्होंने पार्टी के आम कार्यकर्ताओं से दूरी बना कर रखी। लोगों से भी उनका संपर्क नहीं रहा। क्षेत्र में वे कोई खास काम भी नहीं करा पाए। अर्थात उनके नाम कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं है। 

दूसरी तरफ कांग्रेस के टेकाम लगातार लोगों के संपर्क में और उनके बीच रहते हैं। उनका दुर्भाग्य यह है कि देश-प्रदेश के साथ बैतूल में भी मोदी और राम लहर चल रही है। इसकी वजह से एक बार फिर भाजपा का ही पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि टेकाम इस बार कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इसकी वजह से जीत का अंतर पिछली बार जैसा नहीं रहेगा । यह घट सकता है।

इस चुनाव में बदला दिख रहा गूजर समाज का मूड

बैतूल क्षेत्र के हरदा जिले की दोनों विधानसभा सीटों के चुनाव में गूजर और राजपूत मतदाता कांग्रेस के पक्ष में गए थे। लेकिन लोकसभा के इस चुनाव में गूजर मतदाताओं का मूड बदला नजर आ रहा है। वह भाजपा के पक्ष में जा सकता है। हालांकि राजपूत समाज में अब भी नाराजगी है। उसका झुकाव कांग्रेस की ओर है। बैतूल क्षेत्र में आदिवासी वर्ग के बाद सबसे ज्यादा मतदाता ब्राह्मण, दूसरे नंबर पर गूजर, तीसरे नंबर पर राजपूत और चौथे नंबर पर जाट मतदाताओं की संख्या है। आदिवासी समाज भाजपा-कांग्रेस के बीच बंटा नजर आ रहा है। गूजर-राजपूतों की खास बात यह है कि दोनों एक के पक्ष में कभी नहीं जाते। ब्राह्मण और जाट समाज का झुकाव भाजपा की तरफ है। दलित वर्ग दोनों दलों के बीच बंटा नजर आता है।


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