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मैं समय हूं से क्यों और कैसे हुई थी महाभारत की शुरुआत, पढ़ें धारावाहिक की कहानी, युधिष्ठिर की जुबानी

मैं समय हूं से क्यों और कैसे हुई थी महाभारत की शुरुआत, पढ़ें धारावाहिक की कहानी, युधिष्ठिर की जुबानी

Sunday Special : रोहतक की पंडित लख्मी चंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफॉरर्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स ( Supva Rohtak ) के नए वाइस चांसलर ( vice chancellor ) गजेंद्र चौहान ( Gajendra Chauhan ) शुक्रवार को हरिभूमि ( haribhoomi/INH24x7 ) के सप्ताह के अतिथि कार्यक्रम में हरिभूमि कार्यालय पहुंचे और अपने जीवन से संबंधित कई किस्सों और कठिनाइयों और मेहनत का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने महाभारत धारावाहिक ( mahabharat serial ) के बारे में भी ऐसा कुछ बताया जिसके बारे में अभी तक किसी को पता नहीं था। गजेंद्र चौहान ने महाभारत धारावाहिक में धर्मराज युधिष्ठिर ( Yudhisthira ) की भूमिका निभाई थी।

महाभारत में मैं समय हूं की शुरुआत

महाभारत शुरू होने से पहले जो मैं समय हूं ( Main samay Hoon ) की आवाज आती है उसका एक रोचक किस्सा भी गजेंद्र चौहान ने बताया कि आखिर इसका आइडिया कहां से आया। उन्होंने बताया कि एपिसोड के शुरू होने से पहले उसके बारे में बताने के लिए टीम ये सोच रही थी कि यह किससे करवाया जाए। राइटर डॉ. रजा मासूम राही जब घर पर खाना खाने के लिए जाते थे तो उनकी पत्नी उनके आने के समय पर अलार्म लगाकर रखती थी। एक दिन वो अलार्म दोपहर 1:30 की जगह रात 1:30 पर बजा जिससे डॉ. रजा मासूम की नींद खराब हो गई। इस पर उन्होंने सोचा कि समय कितना बलवान है। बस उन्होंने इसके बाद लिखा कि मैं समय हूं और मैं आपको कहानी सुनाता हूं।

मैं समय हूं आवाज किसकी है

मैं समय हूं की आवाज मशहूर वॉइस ओवर कलाकार हरीश भिमानी की है। उनकी इस आवाज का लोगों पर ऐसा जादू चला कि इस शब्द और आवाज को आज हर कोई पहचानता है। महाभारत देखते हुए जब यह आवाज टीवी पर गूंजती है तो हर काेई इसका दीवाना हो जाता है। हरीश भिमानी महाभारत में कभी ऑनस्क्रीन नहीं दिखे, पर पर्दे के पीछे रहकर उन्होंने अपनी इसी आवाज से लाेगों को दिल जीत लिया।

पाठ्यक्रम में शामिल करनी चाहिएं रामायण और महाभारत

इस दौरान गजेंद्र चौहान ने कहा कि महाभारत और रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। जिससे कि आने वाली पीढ़ी को भी नैतिक शिक्षा और हमारे इतिहास के बारे में पता चले। जरूरी है कि हम अपने बच्चों को विरासत में रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से मिलने वाली शिक्षा देकर जाएं। यही उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होगी। वहीं उन्होंने ये भी कहा कि रामायण और महाभारत दूरदर्शन के माध्यम से हर पांच साल बाद दिखाया जाना चाहिए।

महाभारत धारावाहिक से मिली विश्व में अलग पहचान

गजेंद्र चौहान ने बताया कि जिंदगी में महाभारत धारावाहिक में काम करना सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा। इसमें धर्मराज युधिष्ठिर का रोल उन्हें मिला और उनकी यही पहचान आजतक कायम है। गजेंद्र चौहान ने बताया कि 1988 में इसके लिए ऑडिशन हुए थे। जिसमें पहले तो वह कृष्ण के रोल के लिए सलेक्ट किए गए। यह धारावाहिक थोड़ा डिले हुआ तो उन्होंने मलयालम फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान उनका वजन बढ़ गया। दो महीने बाद जब महाभारत सीरियल के लिए फोन आया तो वहां उन्हें देखकर ये कहा गया कि वजन बढ़ गया है जो कृष्ण के रोल के लिए सूट नहीं करता। वजन नहीं घटा तो उन्हें बलराम का रोल ऑफर किया गया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्हें रवि चोपड़ा ने 17 अगस्त 1988 को युधिष्ठिर के किरदार के लिए एक ऑडिशन देने के लिए कहा। उन्हें कॉस्ट्यूम पहनाए गए और जब उन्होंने परफार्म किया तो वह सलेक्ट हो गए।

महाभारत के बाद 8 माह काम नहीं मिला

गजेंद्र चौहान ने बताया कि महाभारत करने के आठ महीने बाद तक उन्हें काम नहीं मिला। मगर 1996-97 के दौरान उन्हें बहुत काम मिला। नौ शिफ्टोें में वह काम करने लगे, एक शिफ्ट दो घंटे की रहती। सीरियल और फिल्म दोनों में काम मिलने लगा। अब सितारा बुलंदियों पर था जो केवल उनकी मेहनत की वजह से ही था।

जब लोगों ने युधिष्ठिर के रूप में पहचाना

गजेंद्र चौहान ने कहा कि महाभारत शूट करने के बाद जब टेलीकास्ट होता था तो कलाकार देख नहीं पाते थे। इसलिए उन्हें कुछ समय तो पता नहीं चला कि उन्हें भी अब लोग पहचानने लगे हैं। एक बार वह बाइक से जा रहे थे और सिगनल पर खड़े हुए तो पास एक कार आकर रूकी। जिसकी खिड़की नीचे कर अंदर बैठे लोगों ने उनकी ओर देखकर कहा कि ये हैं युधिष्ठिर। जिसके बाद उन्हें पता चला कि लोग उन्हें अब पहचानने लगे हैं।


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