यहां दानव ही देवता : 'बकासुर' पूरी करते हैं लोगों की मनोकामनाएं, प्रसाद के तौर पर चढ़ाई जाती है शराब

यहां दानव ही देवता : 'बकासुर' पूरी करते हैं लोगों की मनोकामनाएं, प्रसाद के तौर पर चढ़ाई जाती है शराब

यूं तो दुनियाभर में कई ऐसे धर्म स्थल हैं जहां लोग देवी-देवताओं से मन की मुरादें मांगते हैं। लेकिन सूरजपुर जिले का खोपा धाम संभवत: दुनियाभर में इकलौता ऐसा धर्मस्थल है जहां देवता नहीं बल्कि दानव की पूजा होती है। मान्यता है कि इस दरबार से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, और मन्नत पूरी होने पर यहां बकरे, मुर्गे की बली दी जाती है। इतना ही नहीं यहां दानव को शराब भी चढ़ाई जाती है। कैसा है यह धाम... और क्या है इसकी मान्यता... आइये पढ़ते और देखते हैं हमारे रिपोर्टर नौशाद अहमद की ये खास रिपोर्ट...

सूरजपुर। श्रद्धालुओं की भीड़, मन्नत के लिए बांधे गए नारियल, धागे और ये पूजा-पाठ का माहौल... जी हां इस स्थान पर पूजा हो रही है। लेकिन ये पूजा किसी देवी देवता की नहीं बल्कि दानव की हो रही है... और इस दानव का नाम है बकासुर... जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते हैं। इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है, इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता है। यह आसपास के इलाके ही नहीं बल्कि और कई प्रदेशों के लोगों के लिए भी आस्था का केन्द्र है। यहां तमाम लोग अपनी मान्यता लेकर आते हैं और मनचाही मुराद पाकर जाते हैं। इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। बताया जाता है कि बकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेड नदी में रहता था। गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वह गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगा। अपनी पूजा के लिए उसने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की। यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्कि बैगा ही कराते हैं। तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अलग ही पूजा विधान

यहां पूजा का विधान भी अलग है। पहले यहां नारियल, तेल और सुपारी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। पहले इस स्थान में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी लेकिन अब आधुनिक दौर में महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजा पाठ करती हैं। इस स्थान में सैकड़ों सालो से पूजा हो रही है, लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है। मंदिर का निर्माण नहीं कराने के पीछे भी एक अलग कहानी है। जानकारो के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी मेरा मंदिर ना बनाया जाए, ताकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रह सकूं। साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाएं नहीं खा सकती हैं। और यहां का प्रसाद कोई भी अपने घर नहीं ले जा सकता है।

भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति का दावा

पिछले कई सौ वर्षो से यह श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। यहां के बैगा, पुजारी भूत-प्रेत और बुरे साए से बचाने का दावा भी करते हैं। यहां भूत-प्रेत बाधा से छुटकारा पाने की चाह लिए पहुंचने वालों की भी लंबी लाइन लगी रहती है। बहरहाल वह पुरानी उक्ति इस धाम के लिए सटीक है कि, ‘‘मानो तो देव, नहीं तो पत्थर’’ यहां एक दानव पर आम लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वे मानते हैं इनकी मन मांगी मुरादें पूरी हो रही हैं। सब मिलकर यह कब कहा जा सकता है की आस्था में इतनी शक्ति होती है कि वह पत्थर में भी जान डाल सकती है। हमारा इरादा यहां अंधश्रद्धा को बढ़ावा देना कतई नहीं है... हम केवल आपको इस बात से अवगत करा रहे हैं कि कोपा धाम क्या होता है।

 

 


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