विदिशा कुबेर : प्राचीन भारत में विदिशा नगर समृद्ध और व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। यहां रहने वाले लोग यक्षों की पूजन करते थे और व्यापारी धन के देवता कुबेर की पूजन करते थे। इसका प्रमाण बैस नदी में मिली 12 फीट ऊंची विशालकाय कुबेर की प्रतिमा है, जो आज विदिशा के संग्रहालय में विदिशा के प्राचीन व्यापारिक केंद्र होने की गवाही दे रही है। पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास बताते हैं कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की यह प्रतिमा मानी जाती है। उस काल में लोग यक्षों की पूजन करते थे।
कुबेर धन के देवता होने के साथ-साथ उत्तर दिशा के देवता (दिग्पाल) माने जाते हैं। उत्तर दिशा को समृद्धि की दिशा भी माना जाता है। विदिशा में प्राप्त कुबेर के एक हाथ में धन की थैली है और कानों में कुंडल पहने हुए हैं। जनेऊ धारण किये हुए हैं और पगड़ी पहने खड़े हैं।
कोलकाता में भी ऐसी यक्ष प्रतिमा
यक्षों की इस तरह की अन्य प्रतिमाएं भी विदिशा में मिली हैं। ऐसी ही एक विशालकाय यक्ष प्रतिमा कोलकाता संग्रहालय में है। इसी तरह करीब 7 से 8 फीट विशालकाय कल्पवृक्ष भी विदिशा में मिला था। इसे भी कोलकाता संग्रहालय में रखा गया है। इनके अलावा समीपस्थ ग्राम रावन में भी रावण की यक्ष प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में है। रामायण में भी कुबेर का जिक्र आता है। धन के देवता कुबेर दशानन रावण के ही भाई थे।
इसलिए बिखरा इतिहास
पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास बताते हैं कि ईसा पूर्व की इस तरह की विशालकाय यक्ष की प्रतिमा सिर्फ विदिशा में प्राप्त हुई है। इसके अलावा सिर्फ मथुरा में भी मिली हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि विदिशा कभी समृद्ध व्यापार का केंद्र हुआ करता था। लेकिन बैसनगर नष्ट हुआ तो वहां का इतिहास भी बिखर गया। कुबेर की यह प्रतिमा भी बैस नदी में मिली है। नदी में प्रतिमा उल्टी अवस्था में पड़ी थी किसी को पता ही नहीं था और लोग नहाने कपड़े धोने के लिए प्रतिमा को पत्थर के रूप में उपयोग करते थे। लेकिन एक बार नदी का जलस्तर कम हुआ तो प्रतिमा स्पष्ट नजर आने लगी। 70 वर्ष पूर्व बैस नदी से निकालकर इसे सुरक्षित कर दिया गया।